मंगलवार, 12 जनवरी 2010

ये क्रिकेट नहीं है पवार साहब!

सुबह उठकर चाय की चुस्कियों के साथ अखबार पढ़ने का मजा ही कुछ और है लेकिन अब चाय की चुस्कियां काफी महंगी पड़ने लगी हैं। चीनी के बढ़ते दामों ने अगर आम आदमी को चाय से दूर रहने के लिये नहीं तो कम से कम चाय कम पीने पर जरूर मजबूर कर दिया है। अब सवाल ये उठता है कि आखिर चीनी के बढ़ते दामों पर जवाब किसे देना है तो वो हैं हमारे महान कृषि मंत्री शरद पवार! बड़ी बात यहां पर ये है कि बढ़ते दामों की मार झेल रही जनता के घावों पर मरहम लगाने की जगह मंत्री जी ने अपने इस बयान से कि 'मैं कोई ज्योतिषी नहीं हूं जो बता दूं कि चीनी के दाम कब घटेंगे' ने जनता के घावों को कुरेद कर रख दिया है। अब मंत्री जी को कौन समझाए कि यह क्रिकेट का मैदान नहीं जो भारत की सारी असफलताओं का ठीकरा टीम और कप्तान पर डाल दिया। यहां तो टीम भी वही हैं और कप्तान भी वही, इसलिये जवाब देना तो बनता है? शायद ये मंत्री जी का बीसीसीआई प्रेम ही है कि वह इस महत्वपूर्ण पद से भी खेल समझकर खेल रहे हैं।
मंत्री जी को खाद्य पदार्थो की बढ़ती कीमतों पर जनता को इस तरह के वाहियात बयान के परे सभ्य और वाजिब जवाब देना चाहिए वरना जनता के जिन घावों को उन्होंने कुरेदा है अगर वह अगले चुनाव तक रहे तो इन घावों का दर्द चुनाव नतीजों पर जरूर दिखेगा। मंत्री जी ने अपने अभी तक के कार्यकाल में जब भी मुंह खोला तो यही बात की कि दाल, चीनी आदि के दाम आने वाले समय में बढ़ेंगे। उनके इस तरह के बयानों से फुटकर विक्रेताओं ने जहां दाम बढ़ने से पहले ही दाम बढ़ाकर खूब फायदा उठाया वहीं बेचारी जनता मजबूर होकर सामान खरीदती रही। लेकिन अब तो पानी सर के ऊपर से गुजरने लगा है। मंत्री जी को अपने पद की मर्यादा का ख्याल करके जवाब भी देना चाहिये और महंगाई पर लगाम लगाने के कारगर उपाय भी करने चाहिये। अगर मंत्री जी ऐसा नहीं कर सकते हैं तो उनके पास अनर्गल बयान देने से बेहतर विकल्प इस्तीफा देना है।